19 अप्रैल 2014

नमन

कल का पूरा दिन मार्खेज़ मय रहा |उनके बारे में उनके प्रसंशकों के ,खुद उनके और उनकी कहानियों उपन्यासों के माध्यम से बहुत कुछ पढ़ा...., जाना उस पर विचारा ..कुछ पढ़े हुए को दोहराते हुए याद किया | इन कालजयी लेखकों जिन्होंने काल को अपने हुनर से जीत लिया ...आखिर कैसे खुद को समय की तेज़ धारा से बचा पाते हैं ? कैसे उनके यश पर काल की खरोंच के दाग नहीं पड़ते? शायद इसलिए कि समय को जीतने वाले इन दुस्साहसी/अपराजेय लेखकों ने अपना लेखन कभी ‘’कालजयी होने’’ की मंशा से या उसे पोसते दुलारते नहीं किया बल्कि काल स्वयं उनके कृतित्व को सलाम करता चला ...परिस्थितियां साधारण होते हुए भी इनकी जीवन के प्रति निष्ठां ,जीने की अदम्य जिजीविषा और सोच असाधारण रही ..सामान्य से परे...लीक से अलग जो उनके लेखन में शब्दशः झलकती है |
’’पूरा हो चुका उपन्यास यानी उपन्यास से उपन्यासकार की पूरी विदाई ‘’...पूरी हो चुकी साँसें और दुनियां से एक भरे पूरे युग की अंततः विदाई ...एक वृहद उपन्यास का पटाक्षेप...सलाम मार्खेज़

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