15 फ़रवरी 2014

17 फरवरी 2014 को प्रगति मैदान दिल्ली में उपन्यास ''मगहर की सुबह '' का लोकार्पण

कुछ कहानियाँ हम नहीं लिखते वो स्वयं को हमसे लिखवा लेती हैं |इस कहानी को भी ऐसी ही घटनाओं में गिना जाना चाहिए |
संयोग कुछ यूँ बना ....स्म्रतियों के कुछ टुकड़े थे जिन्हें जोड़ जाड़कर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी आज से कई बरसों पहले ...डायरी की शक्ल में उसके कुछ पन्नों में .... फिर वो डायरी भी किसी विस्मृति के नीचे दब गई और खो भी गई और उसके साथ वो पंक्तियाँ भी |सरपट दौडती ज़िंदगी के बीच ही ,कई वर्ष बाद उस ‘’याद’’ के सूखे पौधे फिर हरहरा गए जब उसी से सम्बंधित घटनाओं की कुछ ताज़ा कतरने किसी परिचित के हवाले वक़्त की हवा में उड़ती हुई मुझ तक आ पहुँचीं ...ज़ख्म फिर हरा हो गया और फिर इस कुलबुलाहट ने शक्ल अख्तियार की कुछ शब्दों की ....कहानी बनने लगी |कल्पना और यथार्थ के ईंट गारे से बनी इस कहानी की अंतिम ईंट जब रखी जा रही थी तब ताज़ा सुबह का मद्धम उजाला फैलने लगा था ...नाम खुद ब खुद सूझा ‘’मगहर की सुबह ‘’|ये उन कहानियों में से एक थी जो बार बार किसी न किसी बहाने और रास्ते आ आकर खुद को लिखवाने की जिद्द ठान लेती हैं| सोचा था चार  पांच हज़ार शब्दों की एक कहानी बन जायेगी तो उस ‘’स्मृति प्रेत’’ से मुक्ति मिलेगी ,नतीज़ा कुछ अलग ही हुआ |कहानी जब अपने अंत तक पहुँची तो लगभग पैंतालीस हज़ार शब्दों का ये एक आख्यान बन चुकी थी |पता ही नहीं चला कि वो नव यौवना जो घटना की मुख्य पात्र थी कैसे खुद के वुजूद को लांघ समाज देश से होती हुई सम्पूर्ण मानवता पर छा गई| उन युवा सपनों के उम्मीदों से लबरेज़ दमकते चेहरे को धीमे धीमे एक बूढ़ी परम्परा में तब्दील होने से बचाना था |कल्पना में उस अंधेरी सर्द पौष की ठंडी रात में अलाव से उठतीं लपटों की तपन से उसका वो तपता रक्तवर्ण चेहरा दमकता हुआ दिखना राहत देता रहा |..रात गाढ़ी थी लेकिन हर रात की एक सुबह होना निश्चित है ..इंशाल्लाह......| पहला उपन्यास पहले प्रेम की तरह होता है कभी नहीं भूलता|परिपक्वता के सयानेपन से इतर एक मासूम निश्छलता और ताजगी उसमे झलकती  है ...निस्संदेह |''मगहर की सुबह''नायिका प्रधान कहानी होते हुए भी किसी विमर्श की मोहताज़ नहीं नाही उन जोशीले नारों में शामिल |अपने रंगमंचीय प्रेम और अनुभव के चलते देशज भाषा, का इस्तेमाल इसमें काफी किया गया है और शैली किस्सागोई |आदरनीय रमेश उपाध्याय सर को इस उपन्यास पर अद्भुत ‘’ब्लर्ब ‘’ लिखने के लिए हार्दिक धन्यवाद |दोस्तों,सभी प्रतिष्ठित और स्थापित लेखकों के बीच इस पहले लघु उपन्यास को भी आप पढेंगे तो खुशी होगी ...|अपने सभी साथी लेखकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |उपन्यास के लोकार्पण में शामिल न हो पाने का अफ़सोस रहेगा |
वंदना 


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